तम ने घेरा मेरे तन को
कुछ न सूझे मेरे मन को.
छोटे छोटे कण्टक-कुल में
उलझा आँचल मेरा !
घायल औ' निष्प्राण हो गया
रोम-रोम मेरे तन का !
तम ने घेरा मेरे तन को
कुछ न सूझे मेरे मन को.
जीवन-पथ में फूल नहीं हैं
फूलों में सुगन्ध नहीं है !
अमृत-रस धारा भी नहीं है
सतरंगी आभा भी नहीं है !
तम ने घेरा मेरे तन को
कुछ न सूझे मेरे मन को.
निशा अन्धेरी चन्द्रहीन है
रवि दिवस भी तेजहीन है !
आशा की कोई किरण नहीं है
निराशा की घनघोर घटा है !
तम ने घेरा मेरे तन को
कुछ न सूझे मेरे मन को.