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शनिवार, 1 जुलाई 2017

विश्व-पुस्तक मेला (पहला दिन)



विश्व-पुस्तक मेला जनवरी 2017


बरसों बाद जब भारत आने का मौका मिला तो दिल्ली के पुस्तक मेले में जाने का संयोग मिलेगा सोचा नहीं था, पुस्तक मेले में जाने का पूरा क्रेडिट दोस्त रचना सिंंह को जाता है. इसी दोस्त की बदौलत मैट्रो का सफ़र करना भी आ गया. सन 2007 से अब तक ब्लॉग जगत की यही एक वाहिद ब्लॉगर मित्र रहीं जिन्होंने वक्त वक्त पर हाल-चाल ही नहीं पूछा बल्कि लिखते रहने को भी कहा. 'नारी' ब्लॉग  




विश्व पुस्तक मेला  10th जनवरी 2017 पहला दिन रचना के साथ मेले में जाना यादगार बन गया. रचना और उनकी भांजी से दुबई में भी मुलाक़ात हो चुकी थी. ब्लॉग जगत की वाहिद ब्लॉगर मित्र जो सेतु बनी हमेशा मुझसे जुड़ी रहीं और आभासी दुनिया से जोड़े रखा. एक दिलचस्प बात हम दोनों की दोस्ती में यह रही कि हम दोनों के विचारों और स्वभाव में समानता होते हुए भी उन्हें व्यक्त करने या क्रियान्वित करने की सोच कुछ अलग थी. ऐसा होते हुए भी दोस्ती क़ायम रहे यही ख़ास है. इसी ख़ासियत के साथ हॉल १२ में दाख़िल हुए. सबसे पहले कुश के 'रुझान' को देखने की इच्छा थी और संयोग से वहीं पहुँच गए. कुश और रुझान से मिल कर बेहद ख़ुशी हुई.  रुझान में ही वंदना गुप्ता से मुलाक़ात हो गई जिसने फ़ौरन पहचान लिया.



कुश और रचना के साथ 'कृष्ण से संवाद' के विमोचन में भी शामिल हुए. वंदना की खिली खिली मुस्कान ने मन मोह लिया. वहीं पर अचानक आभा बोधिसत्व को देख कर ख़ुशी दुगुनी हो गई. सोचा था आभा से फिर मुलाक़ात होगी लेकिन मेले की भीड़ में खो जाना इसी को कहते हैं जो एक बार नज़र से ओझल हुआ तो फिर ना मिला !


रुझान में ही रंजना भाटिया , उनकी बेटी और उसकी नन्ही सी परी समायारा से मुलाक़ात हुई. रंजू से मिलना हमेशा परिवार के किसी अपने से मिलना जैसा एहसास दिलाता है.





 हिंद युग्म के शैलेश उम्र में जितने छोटे हैं अनुभव में उतने ही बड़े. हिंद युग्म के साथ आगे बढ़ते देख बेहद ख़ुशी हुई. वहीं पर हथकढ के किशोर चौधरी , रश्मि रविजा और कितनी परिचित अपरिचित मुस्कुराती हस्तियों से मिलना सुखद अनुभव रहा. हिंद युग्म की पूरी टीम को हार्दिक शुभ कामनाएँ !




सुखद आश्चर्य था कि विभा जी भी मेले में आने वाली थीं हालाँकि उसी रात उनकी मुंबई वपिसी की फ़्लाइट भी थी. दिल्ली के एक कोने से दूसरे कोने आना आसान नहीं था फिर भी पहुँचीं और हम मिले चाहे कुछ वक़्त के लिए. "समरथ can" की लेखिका जो थीं !!  वे वाणी प्रकाशन में दाख़िल हुईं और हमने घर लौटने की सोची.





वाणी प्रकाशन के बाहर की सजी हुई दीवार का एक अलग ही आकर्षण था. पहले दिन रचना के साथ भी वहाँ खड़े दीवार को निहारते सराहते रहे थे. वक़्त जैसे कपूर सा उड़ गया और रचना के जाने का वक़्त आ गया. माँ से वक़्त पर घर पहुँचने का वादा था इधर मेरी चिंता थी कि पहली बार अकेली कैसे घर पहुँचूँगी. उम्र के किसी भी पड़ाव पर अपनी फ़िक्र में किसी को देख कर अच्छा लगता है. कुश की निगरानी में छोड़ कर अलविदा कह कर चली गईं और मैं रुझान की रौनक़ देखने में मगन हो गई. वहीं ग़ज़लों के गुरु सुबीर जी और ग़ज़ल सम्राट नीरज गोस्वामी से कुछ पल का मिलना हुआ.

बहुत कुछ लिखना अभी बाकि है जो नहीं लिखा गया वो यादों में ताज़ा है. 

 क्रमश: 









3 टिप्‍पणियां:

अन्तर सोहिल ने कहा…

पुस्तक मेले में लेखकों से मिलना सुखद हो जाता है

अजय कुमार झा ने कहा…

वाह आपने तो पुस्तक मेले की याद ताज़ा कर दी मीनू दीदी | बहुत सुन्दर | अब नियमित लिखते रहिये , हम पढने वालों को प्रतीक्षा रहती है

pushpendra singh ने कहा…

bahut hi badiya