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बुधवार, 11 मई 2011

उड़ान


 रेगिस्तान का सूर्यास्त 
















चंचल मन की चाह अधिक है

कोमल पंख उड़ान कठिन है

सीमा छूनी है दूर गगन की

उड़ती जाऊँ मदमस्त पवन सी

साँसों की डोरी से पंख कटे

पीड़ा से मेरा ह्रदय फटे

दूर गगन का क्षितिज न पाऊँ

आशा का कोई द्वार ना पाऊँ !
(मन के भाव नारी कविता ब्लॉग़ पर जन्म ले चुके थे,,,आज उन्हें अपने ब्लॉग़ पर उतार दिए...)

22 टिप्‍पणियां:

  1. उड़ान भरी है तो हौसला रखना होगा..जरुर मिलेगा आशा का द्वार भी...


    उम्दा रचना...

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  2. छोटी छोटी भरूँ ऊड़ानें
    आस, बड़ी भी भर पाऊँ मैं

    जहाँ ढले सूरज प्रतिदिन
    वहाँ तलक भी उड़ पाऊँ मैं

    सुंदर रचना!

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  3. पक्षी के सीमाहीन उड़ान के बिम्ब के जरिये नारी मन की अकुलाहट की अभिव्यक्ति !

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  4. यह तो भावों का कोलाज है कविता में। और चित्र भी कितना जानदार लिया गया है!

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  5. snehil ,mamsprsi kavy dil ki gahrayiyon men utarata hua ,apna sa laga ji/
    badhayi.

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  6. छोटी छोटी भरूँ ऊड़ानें
    आस, बड़ी भी भर पाऊँ मैं
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.....

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  7. चलो दिल्ली दोस्तों अब वक्त अग्या हे कुछ करने का भारत के लिए अपनी मात्र भूमि के लिए दोस्तों 4 जून से बाबा रामदेव दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठ रहे हें हम सभी को उनका साथ देना चाहिए में तो 4 जून को दिल्ली जा रहा हु आप भी उनका साथ दें अधिक जानकारी के लिए इस लिंक को देखें
    http://www.bharatyogi.net/2011/04/4-2011.html

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  8. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति मीनाक्षी जी , इच्छाएं अनंत होती हैं लेकिन - "कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता"

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  9. बहुत सुन्दर भावो की उडान है।

    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  10. कितने गहरे भाव छुपा रखे है आपने बस कुछ पंक्तियों में...बहुत सुंदर...धन्यवाद।

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  11. चंचल मन और कठिन चाह... सुन्दर.

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  12. खूब.. बहुत बढ़िया लगी कविता .. तस्वीर भी बहुत कह रही है :)

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  13. साँसों की डोरी से पंख कटे ....

    मन की चाह
    जब संकल्प का दामन थाम ले
    तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं हो सकती
    "ख़ुशी के पलों में तो हँसते रहे हो
    मुसीबत में भी मुस्कराओ, तो मानें"

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  14. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.....
    सादर....

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  15. पर उड़ना तो फिर भी है ... जीवन तो जीना ही है ... आशा की किरण खोजनी है ...
    भावों को कलम दे दी है आपने ...

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  16. मुक्त होकर उड़ने की चाह अच्छी है, आशा का द्वार तो खुला हुआ सहज ही मिल जाएगा। बस चाह रहे हमेशा।
    पढ़ कर अच्छा लगा ...उड़ते रहो यही अाशा है...

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  17. मीनाक्षी जी सुन्दर भाव सार्थक शब्द बन्ध
    सीमा छूनी है दूर गगन की
    पर
    आशा का कोई द्वार न पाऊँ
    ने पंख कटे होने का अहसास करा दिए -बहुतेरा ऐसा होता है
    शुक्ल भ्रमर ५

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