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रविवार, 8 मई 2011

माँ

माँ .........

लिखने को कुछ नहीं पर एहसास बेशुमार हैं.......
याद आते हैं बचपन के दिन.....
माँ का प्यार.....मारती फिर दुलारती.....
रोते रोते गले लगाती.... बाँहों में भरती
लाख चाहने पर भी रोक न पाती.....
सब का गुस्सा मुझ पर उतारती...

लिखने को कुछ नहीं पर एहसास बेशुमार है...
याद आते हैं जवानी के दिन.....
गलत जाते कदमों को रोक लेती...
मचलती चाहतों को भाँप लेती..
अनकही कहानी सारी सुन लेती...
मुखरित होता मौन समझ लेती...

लिखने को कुछ नहीं पर एहसास बेशुमार है...
याद आते हैं अब दोस्ती के दिन...
पल में दोस्त बन नसीहत लेना...
पल में माँ बन कर नसीहत देना..
पल में रूठना , पल में हँस देना..
पल पल का हिसाब लेना देना....

स्पाइस गर्लज़ का 'ममा' गीत माँ के नाम ....


16 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति ..माँ हर वक्त बेटियों को संवारती रहती है ...हर उम्र पर ...

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  2. Bahut,bahut sundar hain ye ehsaas 'beshumaar'!

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  3. बेनामी9 मई 2011, 2:23:00 am

    जैसे मैथिलीशरण गुप्त राम के विषय में लिखते हैं - राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है।

    वैसी ही बात मां के लिये भी कही जा सकती है।

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  4. स्त्री जब माँ होती है उस के समान कोई नहीं होता।

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  5. क्या बात है...


    मातृ दिवस की शुभकामनाएँ.

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  6. khubsurat ahsas kavya men ,jivantata
    pradan karta hua .shukriya ji .

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  7. Sab bas yaad ban jaata h... kyu achha waqt itni jaldi guzar jata h :(

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  8. कम शब्दों में पूरा काव्य लिख दिया मीनाक्षी जी । माँ जैसा कोई नहीं !

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  9. Reading your poem is also an "ahsaas" takes one back in memories
    nICE ONE

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  10. माँ का प्यार और स्नेह वटवृक्ष के समान होता है , कठिनाई की धूप से बच्चो को महफूज रखती हुई .

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  11. माँ जैसा कोई नही होता।

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  12. लिखने को कुछ नहीं...पर एहसास बेशुमार हैं...कह कर तो आपने सारा अनकहा लिख दिया....

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  13. माँ के प्रति बेहतरीन आदर अभिव्यक्ति ....
    शुभकामनायें !!

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  14. "मुखरित होता मौन समझ लेती" वाह ! क्या संयोग है ! मैंने भी ठीक ऐसी ही कुछ बात कही कल अपने पोस्ट में.

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  15. ’मां’इस एक शख़्सियत में अनन्त सॄष्टि समायी हुई है ...अच्छा सोचा .....

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