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गुरुवार, 5 अगस्त 2010

मैं अपराधिनी.....!

पिछली पोस्ट में अपने आप को अनफिट कहा क्योंकि अपने देश के साँचे में फिट होने के लिए तपने की ज़रूरत है, वैसा न करके हम पाप के भागीदार हो जाते हैं..... आज कहती हूँ कि मैं अपराधिनी भी हूँ ..... अत्याचार करने वाले से अधिक अत्याचार सहने वाला दोषी होता है...... कई दिनों का मौन आज टूटा जब रसोईघर की अल्मारियों को अन्दर से पैंट करने के लिए खोला गया....... पड़ोसी ने बेदर्दी से किचन की दीवार ऐसे तुड़वाई जिसे देख कर एक और सदमा लगा..... किचन केबिनेट के अन्दर टूटी दीवार देख कर दिल बैठ गया..... इंसान इतना स्वार्थी हो गया है कि एक पल के लिए नहीं सोचता कि खाली हाथ आए हैं खाली हाथ ही जाना है.....
मन ही मन अपने आप को कई नाम से पुकारने लगती हूँ....कभी अपने आप को कोसती हूँ कि क्यों नहीं घर के बाहर खड़ी होकर ज़ोर ज़ोर से चिल्ला कर पड़ोसी की सोई हुई आत्मा को जगा दूँ.... फिर खुद ही अपने आप पर हँसने लगती हूँ ..... सोई हुई आत्मा को तो जगाया जा सकता है लेकिन जहाँ आत्मा मर चुकी हो वहाँ पत्थर पर सिर पटकने वाली बात हो जाती है........
कहा जाता है 'यथा राजा, तथा प्रजा' फिर लोगों को दोष देने का कोई लाभ नहीं..... घर के पिछवाड़े पानी की अनगिनत टंकियाँ बहती हुई देख कर लगता है जैसे इंसानियत बह कर गटरों में गुम हो रही है...... क्यों न हो...जब देश के नेता दूध के टैंक सड़कों पर बहाते हुए नहीं सोचते कि हज़ारों नवजात शिशु दूध के बिना मर जाते हैं....

















डी.डी.ए के बन्द फ्लैट की किचन के ऊपर टॉयलेट.... !!!!