गुरुवार की शाम घर से बाहर जाने का जोश ठंडा पड़ गया ..... रेतीला तूफ़ान (सैण्ड स्ट्रॉम) ऐसा शुरु हुआ कि घर के अन्दर भी साँस लेना मुश्किल हो गया... जान गए कि अभी फिलहाल कुछ देर के लिए तो बाहर निकलना नामुकिन है....सो चाय नाश्ता करते हुए एक फिल्म देखना निश्चित किया....
‘अगस्त रश’ ....सपनीली फिल्म जिसमें प्रेम और ममता का अनोखा रूप देखने को मिला.....संगीत की सुनहरी दुनिया में मिले दो अजनबी अनायास एक दूसरे की ओर खिंचे चले गए..दोनों ही संगीत के दीवाने....पहली नज़र का प्यार शायद इसी को ही कहते होंगे.....ऐसा हुआ जो नहीं होना चाहिए था... लड़की के पिता ने अपने अनुभव का सहारा लेकर दोनो को अलग करने की कोशिश की... सफ़ल भी हो गए......प्रेमी जोड़े की संतान को भी उनसे दूर कर दिया...ग्यारह साल के बाद बीमार पिता ने अपनी बेटी को अस्पताल बुला कर पुराने रहस्य को खोल दिया कि उसकी संतान ज़िन्दा है लेकिन किसी अनाथाश्रम है.....शायद मरता हुआ इंसान किसी भी अपराध भावना को लेकर इस दुनिया से नहीं जाना चाहता.... उधर दोनों प्रेमी भटकती आत्माओं की तरह दोनों एक दूसरे की तलाश में जी रहे थे.... उधर नन्हा सा बच्चा भी बड़ा हो रहा था अपने माता पिता की तलाश में.... संगीत प्रेम उसे अपने माता पिता से विरासत में मिला था.. प्रकृति के रोम रोम में संगीत की स्वर लहरी उस पर अनोखा जादू कर देती... उसे विश्वास था कि कहीं न कहीं उसके माता पिता भी उसे चाहते हैं...वे भी उसकी तलाश में होंगे.... संगीत के द्वारा वह अपने माता-पिता को खोजना चाहता था........
फिल्म के अगले हिस्से में शहर में पहुँचा लड़का खो गया और पहुँच गया एक ऐसी जगह जहाँ अनाथ बच्चे एक साथ रहते संगीत के ज़रिए पैसा इक्ट्ठा करके अपने लीडर को देते ... वह हिस्सा मन को बाँध न पाया लेकिन इसी बीच नाटकीय अन्दाज़ में पिता पुत्र की कुछ पल की मुलाकात भी होती है....
वहाँ से भाग कर चर्च में एक नन्हीं सी बच्ची से मुलाकात फिल्म को रोचक बना देती है.... उस बच्ची के कमरे में बैठकर संगीत बनाने का अनोखा तरीका हैरान करता है कि इतना छोटा सा बच्चा इतनी गहराई से कैसे अनुभव कर सकता है.... बच्चे का गिटार बजाने का अनोखा तरीका...गिटार बजाते हुए मंत्रमुग्ध करती मासूम मुस्कान ... मासूम मुस्कान, अलौकिक प्रेम की आभा और संगीतमय दिशाएँ.... मन को मोहित कर जाती हैं....
सुबह के सूरज की इठलाती किरणों का इधर उधर दौड़ना.. हवा का गुनगुनाना... .बास्केटबॉल खेलते बच्चों के जूतों की आवाज़ में भी उसे संगीत सुनाई देता...दूर किसी पार्क में झूला झूलते बच्चों की किलकारियाँ ... उसे मंत्रमुग्ध कर देतीं... चर्च की उस बच्ची के कारण उसके हुनर को निखारा वहाँ के बहुत बड़े संगीत स्कूल ने...
एक बहुत बड़े पार्क में संगीत के कार्यक्रम में माँ और बेटा दोनों हिस्सा लेते हैं....माँ को विश्वास था कि इसी शहर में कहीँ उसका खोया हुआ बच्चा है जिस तक उसके मन की आवाज़ पहुँच सकेगी... और बेटा हज़ारों लोगों के बीच में संगीत के माध्यम से अपने माता पिता तक अपने दिल की आवाज़ पहुँचाना चाहता था.
अंत में संगीत ने ही उन तीनों को एक दूसरे से मिला भी दिया.... फिल्म में संवाद बहुत कम हैं ... चेहरे पर आते जाते हाव भाव बहुत कुछ कह जाते हैं.... फिल्म देखने के बाद महसूस हुआ कि प्रेम संगीतमय है और संगीत प्रेमी ही प्रेम की परिभाषा को आसानी से समझ सकता है....
फिल्म के बारे में हम सही कह पाए हैं या नहीं यह तो आप फिल्म देख कर ही बता सकते हैं... !
college ke time dekhi thi...bachche ki sangeet dekh paane ki kshamta adbhut thi...har cheez me sangeet hai tab samajh me aya...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह उम्दा ..बधाई.
जवाब देंहटाएंफिल्म कितनी अच्छी होगी आपका विवरण बता रहा है -कोई हिन्दी फिल्म शायद इस नक़ल पर बनी थी
जवाब देंहटाएंदेखी हुई फिल्म है...बहुत अच्छे से वर्णित किया है आपने.
जवाब देंहटाएंएकांत और अंधड़ में एक सुरुचिपूर्ण फिल्म ने बहुत सकून दिया होगा।
जवाब देंहटाएंमीनू दी चलिए इसी बहाने से फ़िर तो आपने न सिर्फ़ एक बेहतरीन फ़िल्म देखी बल्कि उसकी कहानी बताते हुए उसकी समीक्षा भी कर दी ।
जवाब देंहटाएंबस एक चीज़ की कमी रह गई .......यदि नाश्ते का मीनू (आपके नाम वाला मीनू नहीं ) पता चल जाता तो :)
अजय जी जैसा मेरा ध्यान भी चाय-नाश्ते पर ज़्यादा था। फिल्म तो हमने आपके वर्णन के साथ देख ही ली :-)
जवाब देंहटाएंयदि नाश्ते का मीनू
जवाब देंहटाएंलोग मेनू और मीनू के अंतर को नहीं समझते
अरे बेनामी बहन
जवाब देंहटाएंमेनू क्या होता है जरा हमें भी बताना
मैनू ता पता है कि मेन्यू होता है खाने-पीने का
बेनामी जी हम ठहरे ठेठ बिहारी , हमरे होटल में तो भर पेट भोजन कुल चौदह रुपैय्या में बस इहे होता है , इत्ता इंग्रेजी आता नहीं है न , अब आप बताए हैं तो सीखेंगे । ई भार्गव ठीक रहेगा कि औक्सफ़ोर्ड ...जौन सा भी आप रिक्मेंड करेंगें , (देखिएगा रिकमेंड ठीक है न ) हम फ़टाक से खरीद लाएंगे । नाम बता देते तो ट्यशन भी ले ही लेते ।
जवाब देंहटाएंअरे रे रे लोग नहीं समझते , काहे ऐसा कह रहे हैं आप , सीधा सीधा कहिए न झा जी नहीं समझे , पूअर अंग्रेज , आप भी न कितना शरमाते हैं जी ??
जवाब देंहटाएंवैसे मजाक से इतर बेनामी जी , आपने ठीक ही कहा , और मैं मानता भी हूं इसे , मगर साथ ही आपको बताता चलूं कि मेन्यू और मीनू का फ़र्क भी जानता तो हूं ही , खैर शुक्रिया आप जैसे टिप्पणिकार ही ब्लोग्गिंग में उत्प्रेरक का काम करते हैं ॥
जवाब देंहटाएंमीनू दी माफ़ी चाहूंगा कि आपकी पोस्ट से अलग इतनी सारी टिप्पणियां कर गया , यदि उचित लगे तो आप मिटा सकती हैं
फिल्म के सार्थक चित्रण और प्रस्तुतीकरण के लिए आभार
जवाब देंहटाएंफिल्म के सार्थक चित्रण और प्रस्तुतीकरण के लिए आभार
जवाब देंहटाएंपिक्चर तो देखी नहीं लेकिन विवरण मजेदार लगा। सुन्दर!
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