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मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

ख़ानाबदोश ज़िन्दगी





नियमित न लिख पाने का एक बड़ा कारण है ख़ानाबदोश ज़िन्दगी... एक सूटकेस लिए कभी यहाँ तो कभी वहाँ... ब्लॉगजगत की पुरानी यादों ने झझकोरा तो एक पोस्ट के रूप में अपने ब्लॉग के बगीचे से एक नई कोंपल फूटी....14 अप्रेल को...सोचा तो यही था कि अब से नियमित लिखना शुरु करेंगे लेकिन फिर से सफ़र की तैयारी शुरु हो गई.....


दो दिन पहले ही दुबई से रियाद आए हैं... अभी यहाँ नेट , टेलिफोन और टीवी कनैक्शन की समस्या है...शहर से दूर एक नई जगह पर घर लेने के कारण नई समस्याएँ भी हैं.... खैर जैसे तैसे 5 जीबी कनैक्शन से ही खुश हैं...


यहाँ बाहर निकलने का सवाल ही नहीं है सो संगीत॥फिल्में और किताबें पढ़ने के बाद फोन पर पुराने दोस्तों से कुछ बातचीत होती है.... सुबह सवेरे धूप की नन्हीं नन्ही किरणें खिड़की के एक कोने से अन्दर आ ही जाती हैं...कुछ देर इठलाती इतराती इधर उधर भागती और फिर निकल जाती किसी ओर दिशा की ओर...खिड़की दरवाज़े बन्द होने के बावज़ूद पता नहीं कहाँ से धूल अन्दर आ धमकती है...दीवारों की मज़बूत बाँहों के घेरे में अपने आप को महफ़ूज़ पाकर मुँह चिढ़ाती सारे घर में उधम मचाती है... हम उसे भगाने मे लगे रहते हैं....


फिलहाल सप्ताह के अंत होने का इंतज़ार है ..... वीरवार और शुक्रवार को नीले आसमान के नीचे निकलने का मौका मिलेगा... शायद कुछ दोस्तों से भी मिलना हो...आभासी दुनियाअ तो लुभाती ही है लेकिन वास्तविक दुनिया का मोह भी नहीं छूटता....!


12 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों दुनियाओं का अपना लुत्फ है..जब जहाँ मौका लगे..

    अनेक शुभकामनाएँ.

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  2. आपके लिखने से ही तो हमने आपका ये सन्देश पढ़ा. अब ये देर हो या सवेर या नियमित हो या न हो. लिख कर अप अपनी बातें व्यक्त तो कर सकती हैं ही........

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  3. कई बार इस यायावरी जिंदगी से उकताहट भी होती है, पर कई बार नई ऊर्जा भी स्फ़ुरित होती है ।

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  4. हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

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  5. जिंदगी एक सफर है सुहाना
    यह कल क्या हो किसने जाना

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  6. इसी आपाधापी और भाग दौड़ का नाम ही तो जीवन है!

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  7. घऱ से बाहर न निकल पाना किसी दंड से कम नहीं। सोच नहीं पाता कि वह जीवन कैसा होगा।

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  8. हर चीज के अपने नफ़े नुकसान हैं

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  9. ई-मेल के बाद ब्लाग दूसरी क्रांति है जो हमें स्थाई रूप से जोड़े रहती है.

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  10. आईये... दो कदम हमारे साथ भी चलिए. आपको भी अच्छा लगेगा. तो चलिए न....

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  11. भागादौड़ी में जो ज्ञान मिलता है वह बैठे रहने में कहाँ ।

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  12. इस जिन्दगी के भी अपने मजे हैं।

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