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शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

आशा का दीप जलाया जाए तो प्रकाश होगा ही...

आजकल हम दिल्ली में हैं.....दुबई से चलते हुए मन में कई मंसूबे बाँधे थे कि भारत भ्रमण के बहाने ब्लॉगजगत की परिक्रमा ज़रूर करेंगे लेकिन यहाँ आकर दिन में तारे नज़र आने लगे... सबसे पहले तो एयरपोर्ट पर उतरते ही प्रीपेड टैक्सी के काउंटर पर ही मज़ेदार अनुभव हो गया... बात बहुत छोटी सी थी लेकिन माँ की डाँट ने सोचने पर लाचार कर दिया कि शायद गलती हो गई... एयरपोर्ट से वसंत कुंज के लिए 165 रुपए की रसीद काट कर 170 रुपए लेने वाले साहब से हमने 5 रुपए वापिस क्यों नही लिए .... सिस्टम को खराब करने का ज़िम्मेदार ठहरा दिया गया...
घर के गेट के आगे पड़ोसी पानी के पाइप से खूब देर तक अपनी कार को स्नान कराते हैं,,,पिछवाड़े में पानी की टंकियाँ ओवर फ्लो होती दिखती हैं जिन्हें देखकर कुछ कह न पाने की विकलता का बयान कैसे करें नहीं जानते...
पूरे देश में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिसे हम चुपचाप देख सुन रहे हैं लेकिन कुछ न कर पाने की पीड़ा भी झेल रहे हैं..... किसी इंसान को अपने पालतू कुत्ते के साथ टहलते देखते ही मन में एक एहसास जागने लगता है कि काश अपने कुत्ते से प्यार करने वाला इंसान अपने आस पास के इंसानों को भी इतना ही प्यार दे पाता....
निराश होने की बजाय आशा का दीप जलाया जाए तो प्रकाश होगा ही... प्रेम, विश्वास और भाईचारे के भाव दिखने लगते हैं..... एक ड्राइवर लम्बे रास्ते से ले जाकर कि.मी. बढाकर पैसा ऐंठने की सोचता है तो दूसरा परिवार के सदस्य की तरह से हर तरह की मदद करने को तैयार दिखता है....
इसी प्यार और विश्वास ने बेटे वरुण को एक हकीम साहब के पास जाने को तैयार कर दिया... सालों से अंग्रेज़ी दवा लेने के बाद जड़ी बूटियों की दवा लेना आसान नहीं था... प्रेम और विश्वास चमत्कार कर देते हैं.... पिछले 4-5 दिन से बिना पेनकिलर लिए वरुण हैरान और परेशान है ... हमें आशा की एक किरण दिखाई देने लगी है कि अपने चमत्कारी देश का चमत्कार ज़रूर दिखाई देगा...