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रविवार, 17 अगस्त 2008

मेरे भैया ....मेरे चन्दा.... !

रक्षाबन्धन के दिन सुबह से ही 'मेरे भैया , मेरे चन्दा' गीत गुनगुनाते हुए आधी रात हो गई....... 11 साल की थी मैं जब नन्हा सा भाई आया हमारे जीवन में .......अनमोल रतन को पाकर जैसे दुनिया भर की खुशियाँ मिल गई हों....

मेरे भैया , मेरे चन्दा मेरे अनमोल रतन
तेरे बदले मे ज़माने की कोई चीज़ ना लूँ

तेरी साँसों की कसम खाके हवा चलती है
तेरे चेहरे की झलक पाके बहार आती है
इक पल भी मेरी नज़रों से तू जो ओझल हो

हर तरफ मेरी नज़र तुझको पुकार आती है
मेरे भैया , मेरे चन्दा मेरे अनमोल रतन
तेरे बदले मे ज़माने की कोई चीज़ ना लूँ

मेरे भैया , मेरे चन्दा मेरे अनमोल रतन
तेरे बदले मे ज़माने की कोई चीज़ ना लूँ


तेरे चेहरे की महकती हुई लड़ियो के लिए
अनगिनत फूल उम्मीदों के चुने है मैने
वो भी दिन आए कि उन ख्वाबो की ताबीर मिले
तेरे खातिर जो हसीं ख्वाब बुने है मैने...

मेरे भैया , मेरे चन्दा मेरे अनमोल रतन
तेरे बदले मे ज़माने की कोई चीज़ ना लूँ

16 टिप्‍पणियां:

Sanjay Karere ने कहा…

अच्छा लगा यह प्‍यारा गीत :)

अमिताभ मीत ने कहा…

मीनाक्षी जी, कितनी - कितनी बातें याद दिला दीं ये गीत सुनवा कर. इस अमर गीत का कोई जवाब नहीं ... आभार आप का ....

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

आपको अंतर्मन से धन्यवाद
इस प्रस्तुति के लिए.
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चन्द्रकुमार

Smart Indian ने कहा…

क्या बात है. बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद!

कुश ने कहा…

प्यारा सा गीत सुनवाने के लिए बहुत बहुत बधाई

Sanjeet Tripathi ने कहा…

क्या बात है।
शुक्रिया इस गाने को सुनवाने के लिए।

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

di abhi kal shaam ko family ke saath baiath kar ye geet gunguna rahi thi aur bhabhi ko bata raahi thi ki is geet ka ek ek lafz kitna chhuta hai dil ko

asal me di chehare nahi sehare shabda hai vaha.n par aur ....har bahan ki tarah maine bhai ke sehare ki mahakti hui kaliyo.n ke liye Anginat khwab ummido ke saja rakhe the

aur sach bhai agar ek pal ko bhi nazar se door ho to har taraf nazare unhe dhundh aati hai.

ye sare geet kahi.n bade bhitar ja ke chhute hai...!

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

प्यार भरा मधुर गीत।

पारुल "पुखराज" ने कहा…

der se suna .kitna meetha hai na di,ye????

संजय पटेल ने कहा…

क्या दिल से बना है ये गीत मीनू दी.
भाई - बहन के रिश्ते का जैसे महागान है ये चित्रपट गीत. यहीं आकर हमारे ये गीत साहित्य को एक चुनौती दे देते हैं.मीत भाई और आप जैसे समवेदनशील लोग मेरी इस बात से इत्तेफ़ाक़ करेंगे शायद कि यदि भाषा का वैभव बढ़ाना है तो मनोरंजन की कविता और साहित्य के बीच की दूरी पाटनी होगी.उर्दू में देखिये जावेद अख्तर,बशीर बद्र,मजरूह,साहिर,शकील फ़िल्म और अदब दोनो में बराबरी से इज़्ज़त पाते हैं वैसे ही नीरज,शैलेन्द्र,गोपालसिंह नेपाली,प्रदीप,भरत व्यास को दोनो इलाक़ों में मान क्यों नहीं दिया जाता...नीरज जी अभी भी मंच पर सक्रिय हैं लेकिन मज़ा देखिये हिन्दी के इस चिरयुवा कवि को सुमन,पंत,महादेवी,निराला,दिनकर,आदि से दोयम मान दिया जाता है सिर्फ़ इसलिये कि नीरज जी अपनी आजीविका के लिये मंच से पढ़ते हैं.भुखे रह कर कविता तो लिखो तो साहित्य के कवि,मंच पर कविता पढ़ कर पैसा कमाओ तो मनोरंजन के कवि...कैसा सौतेलापन है ये हमारा.

Asha Joglekar ने कहा…

BAHUT ABHAR IS SUNDER GEET KO SUNWANE KA.

बालकिशन ने कहा…

बहुत बहुत आभार.

डॉ .अनुराग ने कहा…

masoom sa pyaara sa geet....

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

प्यारा गीत सुनवाने का शुक्रिया
मीनाक्षी जी !
- लावण्या

admin ने कहा…

भाई बहन का प्यार है। रक्षा बंधन त्यौहार है।

vipinkizindagi ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट रचना
उम्दा पोस्ट रचना