जले हुए तन से
कहीं अधिक पीड़ा थी
सुलगते मन की
गुलाबी होठों की दो पँखुडियाँ
जल कर राख हुई थीं
बिना पलक की आँखें
कई सवाल लिए खुली थीं
माँ बाबूजी के आँसू
उसकी झुलसी बाँह पर गिरे
वह दर्द से तड़प उठी...
खारे पानी में नमक ही नमक था
मिठास तो उनमे तब भी नही थी
जब कुल दीपक की इच्छा करते
जन्मदाता मिलने से भी डरते
कहीं बेटी जन्मी तो............
सोच सोच कर थकते
पूजा-पाठ, नक्षत्र देखते ,
फिर बेटे की चाहत में मिलते
कहीं अन्दर ही अन्दर
बेटी के आने के डर से
यही डर डी एन ए खराब करता
होता वही जिससे मन डरता
फिर उस पल से पल पल का मरना
माँ का जी जलना, हर पल डरना
बेचैन हुए बाबूजी का चिंता करना
अपनी नाज़ुक सी नन्ही को
कैसे इस दुनिया की बुरी नज़र से
बचा पाएँगें...
कैसे समाज की पुरानी रुढियों से
मुक्त हो पाएँगे....
झुलसी जलती सी ज़िन्दा थी
सफेद कफन के ताबूत से ढकी थी
बिना पलक अपलक देख रही थी
जैसे पूछ रही हो एक सवाल
डी एन ए उसका कैसे हुआ खराब
बाबूजी नीची नज़र किए थे
माँ के आँसू थमते न थे
अपराधी से दोनो खड़े थे
सोच रहे थे अभिमन्यु ने भी
माँ के गर्भ में ज्ञान बहुत पाया था
गार्गी, मैत्रयी, रज़िया सुल्तान
जीजाबाई और झाँसी की रानी ने
इतिहास बनाया
इन्दिरा, किरनबेदी, लता, आशा ने
भविष्य सजाया
फिर हमने क्यों न सोचा....
काश कुछ तो ज्ञान दिया होता...
समाज के चक्रव्यूह को तोड़ने का
कोई तो उपाय दिया होता....
माँ बाबूजी कुछ कहते उससे पहले
दोनो की आँखों से
पश्चाताप के दो मोती लुढ़के
उसके स्याह गालों पर ढुलके
उस पल में ही जलते तन में
अदभुत हरकत सी हुई
सुलगे मन में जीने की इच्छा सुलगी
उस उर्जा से शक्ति गज़ब की पाई
नए रूप में नए भाव से
मन की बगिया महकी !
( जिन कविताओं को पढ़कर इस रचना का जन्म हुआ , सभी उर्जा स्त्रोत जैसी यहीं कहीं छिपीं हुई हैं)
12 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति. अद्भुत रचना के लिए बधाई.
क्या कहूँ? जीवन के कड़वे सचों को सामने लाती बहुत भावपूर्ण रचना।
घुघूती बासूती
बहुत सुन्दर, हृदय स्पर्शी भाव युक्त कविता!
बहुत ही सुन्दर हृदय स्पर्शी रचना के लिये धन्यवाद
कन्या रत्न के लिये आशीर्वाद स्वरुप यह कविता
बहुत अच्छी लगी मीनाक्षी जी ...
इसी तरह दूसरोँ को साथ लिये आगे बढेँ
अस्तु,
- लावण्या
जब कुल दीपक की इच्छा करते
जन्मदाता मिलने से भी डरते
कहीं बेटी जन्मी तो............
" very touching and emotional poetry, witn a inspiring message"
Regards
बहुत सुन्दर, हृदय स्पर्शी भाव युक्त कविता!
सुंदर!
अति सुंदर!
अक्सर यह होता है कि हम कुछ पढ रहे होते हैं और हमारे मन में उसी क्षण कुछ नया उग आता है। शायद इसी प्रक्रिया से आपकी यह कविता जन्मी। आपने जिस ईमानदारी से इसे स्वीकारे किया, ऐसा बहुत कम लोग करते हैं।
अन्दर तक सब कुछ हिला कर रख देने वाली शशक्त रचना....जो एक नारी ही लिख सकती है.
नीरज
भावपूर्ण रचना.....मन के कई कोनो को झंझोर जाती है....खास तौर से शुरू की कुछ कई पंक्तिया.....
बहुत सुंदर बहुत भावुक कर दिया आपकी इस रचना ने
एक कविता में समाये इतने भाव... सचमुच बहुत सशक्त रचना है...खारे पानी में नमक ही नमक था
मिठास तो उनमे तब भी नही थी. हर बात में दर्द छिपा है दी...
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