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बुधवार, 6 अगस्त 2008
प्रेम चमकते हीरे सा.. !
प्रेम का भाव, उस भाव के आनन्द की अनुभूति...इस पर बहुत कुछ लिखा गया है.. अक्सर बहस भी होती है लेकिन बहस करने से इस विषय को जाना-समझा ही नही जा सकता ... केवल प्रेम करके ही प्रेम को जाना जा सकता है।
प्रेम करते हुए ही प्रेम को पूरी तरह से जाना जा सकता है... नदी में कूदने की हिम्मत जुटानी पड़ती है तभी तैरना आता है ... प्रेम करने का साहस भी कुछ वैसा ही है.. किसी के प्रेम में पड़ते ही हम अपने आप को धीरे धीरे मिटाने लगते हैं...समर्पण करने लगते हैं..अपने आस्तित्त्व को किसी दूसरे के आस्तित्त्व में विलीन कर देते हैं... यही साहस कहलाता है...
प्रेम का स्वरूप विराट है...उसके अनेक रूप हैं... शिशु से किया गया प्रेम वात्सल्य है जिसमे करुणा और संवेदना है तो माँ से किया गया प्रेम श्रद्धा और आदर से भरा है...उसमें गहरी कृतज्ञता दिखाई देती है... यही भाव किसी सुन्दर स्त्री से प्रेम करते ही तीव्र आवेग और पागलपन में बदल जाते हैं.. मित्र से प्रेम का भाव तो अलग ही अनुभूति कराता है, उसमें स्नेह और अनुराग का भाव होता है...
प्रेम के सभी भाव फूलों की तरह एक दूसरे से गुँथे हुए हैं...हमारा दृष्टिकोण , हमारा नज़रिया ही प्रेम के अलग अलग रूपों का अनुभव कराता है।
मेरे विचार में प्रेम चमकते हीरे सा समृद्ध है.... कई रंग हैं इसमें और कई ठोस परतें हैं . हर परत की अपनी अलग चमक है जो अदभुत है... अद्वितीय है !!!
(घुघुतीजी के स्नेह भरे आग्रह का परिणाम है यह पोस्ट... प्रेम भाव को शब्दों का रूप देने के लिए वक्त चुराना पड़ा नहीं तो इस वक्त हम कोई ब्लॉग़ पढ़ रहे होते )
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22 टिप्पणियां:
ख़ुसरो दरिया प्रेम का
उल्टी वाकि धार
जो उतरा सो डूब गया
जो डूब सो पार
किसी भी स्तर पर प्रेम की मेरी परिभाषा ये है कि प्रेम मे तब प्रवेश करो जब तुममें अपनी पहचान पोंछने की हिम्मत हो.
जैसा चिट्ठे का नाम है आज आपने वैसा ही विचार रख दिया है....पर कही बातें गहरे तक कुछ कह जाती है...
प्रेम गली अति संकरी ..जो प्रेम करे वही जाने जिसने अपना सब खो के जीना हो वही इसको माने ..
अच्छी लिखी है आपने प्रेम की परिभाषा ..
प्यार बस प्यार हे, ओर कुछ नही
बहुत सुंदर पोस्
ट और उतनी ही सुंदर बात कही संजय भाई ने। आप दोनों को बधाई।
बहुत सुंदर प्रस्तुति !
हीरा सबसे कड़ा भी होता है तो क्या प्रेम भी ...
प्रेम तो वो रंगोली है जो अपने रंगो से आँगन में खुशिया भर देती है.. धन्यवाद इस पोस्ट के लिए
प्रेम के हीरे की चमक सदा कायम रहे बढिया लिखा मीनाक्षी जी..
-लावण्या
प्रेम के भाव को पूरी तरह अभिव्यक्त कर पाएँ ऐसे शब्द अभी बने ही नहीं हैं। यही कारण है कि उस के लिए अनेक दूसरे माध्यमों जैसे गान, संगीत,नृत्य, अभिनय आदि की आवश्यकता होती है। फिर भी यह भाव पूरी तरह अभिव्यक्त नहीं होता। शायद कभी हो भी न पाए।
achcha laga aapke vicharon ko padh kar..
बहुत उम्दा...बहुत बढिया.
@रंजना जी,
प्रेम गली अति साँकरी जामें दुइ न समाँय...
यानि कि प्रेम की सँकरी गली में दो लोग एक साथ नहीं घुस सकते। पहले दोनों को एक होना पड़ेगा...।
जो लोग स्त्री-पुरुष को अलग-अलग रखकर देखने और समझने की आदत डाल चुके हैं उन्हें शायद प्रेम के दर्शन ही न हों।
बहुत तलाश के बाद
तरासकर जो जीवन को
समझ के सार्थक सेतु दे दे
उसे शब्द अभिव्यक्त नहीं कर पाते.
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संजय जी का कथन बहुत सही है
लेकिन वैसा हो पाना बहुत मुश्किल काम है.
डा.चन्द्रकुमार जैन
Beautiful.
आप सबको प्रणाम और आभार...प्रेम के स्वरूप को देखने का सबका अपना अपना नज़रिया है...
@संजय भाई..मानते है कि 'प्रेम ही सत्य है' तभी प्रेम पर लिखने की हिम्मत कर पाए ..
@उन्मुक्तजी.. हीरा कड़ा है तो प्रेम भी कहाँ सरल है...प्रेम और पीड़ा का तो गहरा नाता है.. प्रसवपीड़ा के बाद ही नारी माँ बनती है और प्रभु से शिशु के रूप मे सबसे प्यारा उपहार पाती है...
@सिद्धार्थजी,, प्रेम गली अति साँकरी..... में रंजनाजी ने सिर्फ स्त्री-पुरुष के ही प्रेम की बात नही है...यहाँ प्रेम में समर्पित होने का भाव कहा है....प्रेम किसी भी रिश्ते से हो ,,,,उसमे अपने आप को विलीन करने की बात है...
बहुत ही प्यारी और सुंदर पोस्ट.
सुंदर विचार सुघड़ता से गुंथे हुए.
बहुत उम्दा लिखा आपने.
बधाई.
"sirf ehsaas hai ye ruuh se mehsuus karo"
di..bahut sundar likha hai:)
खूब बगीचा बनाया - लगा इसको तो ब्लॉग के हाशिये पर स्थाई रूप से रहना चाहिए - [सुझाव है ] - सादर - मनीष
kya baat hai di..... dhai akhar prem ka padhe so pandit hoy
प्रेम को शब्दों में बाँधना सम्भव नहीं है.
आपके विचार अच्छे हैं पर इसमें यह और जोड़ने का अनुरोध है
हर परत पर पड़्ने वाला प्रकाश का कोण ही इसकी चमक की मात्रा की अनुभूति कराता है
प्यार की सही परिभाषा न ही कभी कोई कर पाया है और न ही कभी कोई कर पायेगा।
आपने अच्छी कोशिश की है।
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