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गुरुवार, 10 जुलाई 2008

दिल कुछ कहना चाहता है लेकिन कह नहीं पाता....

आज अनिलजी के ब्लॉग़ पर गीत सुना.. " माई री,,,, मैं कासे कहूँ अपने जिया की बात" ..... सच में कभी कभी हम समझ नहीं पाते कि दिल की बातें किससे कहें...और कभी कभी तो हम चाह कर कुछ कह नही पाते...मन की बातें मन में ही रह जाती हैं... चाहते हैं कि अनकही को कोई समझ ले... इसके लिए कभी हम शब्दों का चक्रव्यूह रचते हैं तो कभी किसी चित्र...किसी गीत...किसी चलचित्र के माध्यम से अपने मन की बात करते हैं...
सोचते है कि कोई भटकते मन की खामोशी और बेचैनी समझ पाएगा .... लेकिन ऐसा कम ही होता है.... हमारे दिल ने भी एक गीत के माध्यम से कुछ कहना चाहा था.. जिसे शायद किसी ने सुना ही नहीं... कुछ दिल ने कहा .... कुछ भी नही..............

मन को समझाने के लिए मन ही मन यह गीत गुनगुनाते हैं...

14 टिप्‍पणियां:

  1. ओह...क्या जबर्दस्त गीत सुनाया आपने, बहुत बहुत धन्यवाद..मन रे...तू काहे ना धीर धरे....

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  2. मेरे पसंदीदा गानों में से एक है यह ...सही कहा आपने अनकहा अनकहा ही रह जाता है जब कोई बात नही समझ पाता तब यही गाना मेरे दिल में भी गूंज उठता है .उतना ही उपकार समझ जितना कोई साथ निभा दे .... .बहुत पसंद मिलती है आपसे

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  3. मिनाक्षी जी
    दोनों ही गीत एक से बढ़ कर एक हैं...चाहे जितनी बार सुनिए..माई री... गीत को मदन मोहन जी ने अपनी आवाज में भी गया और उसको सुनने का अपना अलग मजा है...कभी मौका लगे तो सुनियेगा.
    नीरज

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  4. वाह ! क्या गीत सुनवाया है ! आपने तो सीधे बचपन में भेज दिया। धन्यवाद।
    घुघूती बासूती

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  5. मीनाक्षी दी,
    ये गीत जीवन के फ़लसफ़े को समझने का बेहतरीन आसरा है. साहिर साहब के जादुई शब्द कैसा सबक़ देते हैं.लगता है गीता पढ़ने की ज़रूरत नहीं सारी बात तो कह दी है इन पंक्तियों ने. और रफ़ी साहब जैसे कोई सूफ़ी दरवेश बन कर अपनी अमर गायकी के साथ नमूदार हैं...वाह वाह ...क्या गीत है...कोई न संग मरे...क्या बात है.

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  6. Meebaxi ji

    This song was rated amongst one of the best songs of Hindi Cinema by some survey association some yrs back.
    Thanx for bringing it here.
    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

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  7. मन के लिए थपकियों का गीत है, यह।

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  8. अनुपमा फ़िल्म का ये गीत उतना ही सुंदर है जितनी फ़िल्म ओर उतना ही सुंदर ये फिल्माया भी गया है.....

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  9. मीनाक्षी जी आपके के लिए.......
    अब के बरस वक़्त है,
    एक मेहमां की तरह,
    मेरा वज़ूद भी है,
    एक टूटे हुए तारे की तरह,
    वो चला गया यूं आकर,
    हवा के एक झोंके की तरह,
    सफ़र लम्बा है मगर,
    मिलेगी मुझको वो एक मंज़िल की तरह,
    अब के बरस वक़्त है,
    एक मेहमां की तरह ]
    मेरा ब्लॉग भी आप देख कर मुझे अनुग्रहित करे

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  10. धीरज ही तो
    धारण करता है....
    वह व्यक्ति को
    धुरीण भी बना देता है.
    विचलन-विदग्ध मानव के लिए
    अमृत की बूँद है यह प्रस्तुति.
    ==========================
    बधाई
    डा.चन्द्रकुमार जैन

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