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मंगलवार, 8 जुलाई 2008

बादलों की शरारत

खिलखिलाती धूप से
बादलों ने छेड़ाखानी की
धरा की ओर दौड़ती किरणों का
रास्ता रोक लिया ....
इधर उधर से मौका पाकर
बादलों को धक्का देकर
भागी किरणें...
कोई सागर पर गिरी
तो कोई गीली रेत पर
हाँफते हाँफते किरणों ने
आकुल होकर छिपना चाहा ....
बादलों की शरारत देख
लाल पीली धूप तमतमा उठी
अब बादलों की बारी थी
दुम दबा कर भागने छिपने की
चिलचिलाती धूप से छेड़ाखानी
मँहगी पड़ी
अपने ही वजूद को बचाने की
नौबत आ पड़ी.... !

11 टिप्‍पणियां:

  1. चिलचिलाती धूप से छेड़ाखानी
    मँहगी पड़ी
    अपने ही वजूद को बचाने की
    नौबत आ पड़ी.... !


    --वाह, बहुत गहरी बात कह गई आप! बधाई.

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  2. अच्छी लगी आपके लिखे बादलों की शरारत मीनाक्षी जी

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  3. बादलों की शरारत देख
    लाल पीली धूप तमतमा उठी
    अब बादलों की बारी थी
    दुम दबा कर भागने छिपने की
    चिलचिलाती धूप से छेड़ाखानी
    मँहगी पड़ी
    अपने ही वजूद को बचाने की
    नौबत आ पड़ी.... !
    wah bahut khub

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  4. बादलों की शरारत देख
    लाल पीली धूप तमतमा उठी
    अब बादलों की बारी थी
    दुम दबा कर भागने छिपने की
    चिलचिलाती धूप से छेड़ाखानी
    मँहगी पड़ी
    अपने ही वजूद को बचाने की
    नौबत आ पड़ी.... !



    अपने ही वजूद को बचाने की नौबत....ये लाइन दिल को छू गई, गहराई तक उतर गई...बहुत खूब

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  5. धूप छावं का क्या खूबसूरत चित्र` खींचा है आपने, बेहद रोचक
    नीरज

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  6. vah eknajm mere bhi sirhaane padi hai in badlo ko lekar ek do din me post karunga.....vaise bhi badal sanjeeda achhe nahi lagte

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  7. वाह ! क्या मनोरम व मनोरंजक दृष्य गढ़ा है आपने ! बादल व किरणों की छेड़छाड़ ! बहुत अच्छी लगी यह कविता।
    घुघूती बासूती

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  8. बहुत सुन्दर खेल है यह, प्रकति का। हमने भी देखा है। पर लिखना न आया ऐसा।

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