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शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

मैं हूं इक लम्हा

मैं हूं इक लम्हा 

मृत्यु अंधकारमय कोई शून्य लोक है 
या नवजीवन का उज्ज्वल प्रकाशपुंज है
या मृत्यु-दंश है विषमय पीड़ादायक
या अमृत-रस का पात्र है सुखदायक
तन-मन थक गए जब यह सोच
सोच 
तब मन-मस्तिष्क मे नया भाव
जागा 
मेरे पास सिर्फ एक लम्हा है
जो अजर-अमर है 
इस मृग-तृष्णा में जी लेने दो !!