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मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011

कीबोर्ड पर थिरकती उंगलियाँ


हाथ की सफ़ाई ... कभी कीबोर्ड पर कभी यहाँ 

आज तेइस दिन बाद उंगलियाँ कीबोर्ड पर थिरकने के लिए मचलने लगी तो सोचा चलो उन्हें मौका दिया जाए...वैसे चलती तो थीं यहाँ लेकिन आँखों की मदद करने के लिए चलती थीं एक ब्लॉग से दूसरे ब्लॉग़ पर क्यों कि दोनों ही दिमाग की ख़ुराक जुटाने में कोई कसर न रखते......

सुबह सवेरे भक्ति संगीत लगा कर होता काम घर का..... दैनिक कार्यों से निवृति ....योग ...सैर.....नाश्ता सुबह का....ईरानी रोटी...खट्टी क्रीम... अखरोट के दो टुकड़े... शहद ... पीनट बटर ..... अपनी देसी चाय के साथ...
फिर निकलना घर से बेटे को ऑफिस छोड़ कर रसोईघर की खरीददारी कभी कभार..... वापिस लौट कर फिर से घर का अंतहीन काम... दोपहर का खाना तैयार करना.... कपड़े मशीन में डालना .... साथ साथ लैपटॉप पर एक से बढ़ कर एक पोस्ट पढ़ना..... टिप जैसी चीज़ टिप्पणी को मान कर उसे नज़र अन्दाज़ करना और बस पढ़ते जाना और मन ही मन मोहित होना .... प्रभावित हो कर सबके लेखन से उन्हें ढेरों शुभकामनाएँ देना.....

इसी बीच वक्त होना .... छोटे बेटे को कॉलेज छोड़ कर आने का ..... लैपटॉप को यूँ ही खुला छोड़ कर जाने का.... आकर फिर से पढ़ने का लालच कहाँ छूटेगा..... आदतें कुछ नशे की जैसे गले लगती है तो जान लेकर ही जाती हैं..... सभी नशे कुछ ऐसे ही हैं......अति न हो तो अति सुन्दर....अति हो तो इति हो जाए ज़िन्दगी की .......
खैर बेटे को कॉलेज छोड़ कर लौटते तो कुछ दोस्तों का प्यार खींचता अपनी ओर .... फोन पर बातचीत...मिलने का वादा...घुमाने का इरादा कर के निकल पड़ते उन्हें संग लेकर यहाँ से वहाँ...... वहाँ से कहाँ कहाँ अब उसकी चर्चा फिर कभी.....

आज के दिन छोटे बेटे ने कार ले जाने की विनती की...अच्छी तरह से जानता है कि 'बेटा बन कर सबने खाया, बाप बन कर किसी ने नहीं' ...इतनी नम्रता से अपने मन की बात मनवा लेता है कि मन ही मन उसकी शीरनी सी चालाकी की तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाती..... कभी कभी बड़े भाई को समझाता है .... मिठास भरे गुर बताता है कि कैसे बड़ों का दिल जीतना है कुछ झुक कर .... क्या फर्क पड़ता है....काम तो निकलता है.... दोनों पार्टी खुश...नम्रता और मान को मिला कर घर का माहौल हो जाता है मिठास भरा......

एक सहेली का आना जाना मुझ पर निर्भर है....दूसरी थकी है लगी है घर को सजाने में..... तीसरी अपनी माँ की सेवा में लगी है....चौथी गई है अपनी दूसरी दोस्त के घर कुछ महीनों के लिए उसकी तन्हाई को दूर करने.... बाकि सभी दोस्त लगे हैं ज़िन्दगी की जद्दोजहद में....जुटे हैं उन्हें आसान करने की आस में.....और  हम करते हैं दुआ इसी आस में कि उनकी आस पूरी हो...... इसलिए आज घर के इस एकांत में उंगलियाँ थिरक रही है कीबोर्ड पर अपने मन का हाल लिखती हुई......

संगीत अभी भी चल रहा है लेकिन भक्ति संगीत की जगह दोपहर की नीरवता को दूर करता हुआ कुछ  अलग ही खुमार लिए हुए ... गीत सुस्त करता  उससे पहले ही फेसबुक पर देखा कि माँ भी ऑनलाइन हैं.... और चुस्त हो गए...... उनसे बात होगी तो दूर तलक होगी....... :) इसलिए आगे की बात फिर कभी......
आज की पोस्ट लिखवाने के सहायक दोस्त को शुक्रिया न किया तो बेमानी होगी....कुछ न कुछ लिखते रहने की बात हुई तो उसी रौ में इतना कुछ लिख गए....बातों ही बातों  में एक  पोस्ट तैयार हो गई जिसका श्रेय फुरसतियाजी को जाता है.