मेरे ब्लॉग

गुरुवार, 19 मई 2011

रेडियोनामा पर विविध भारती

कल पहली बार रेडियोनामा पर विविध भारती सुना


कल से ही रेडियोनामा पर विविध भारती सुन रहे हैं.....फेसबुक का पेज खुला था इसलिए तुरंत यूनूस साहब की वॉल पर धन्यवाद का सन्देश दिया..पता चला कि एक तकनीकी जानकार रोहित दवे जिन्होंने निस्वार्थ भाव से नेट पर विविध भारती को लाने का काम किया है...उनको भी धन्यवाद किया... 


Yunus Khan मेरा छायागीत रविवार को होता है। मैं तकनीकी लोगों Rohit Daveकी चर्चा इसलिए कर रहा हूं क्‍योंकि ये उन्‍होंने निस्‍वार्थ किया है। बिना किसी आर्थिक उम्‍मीद के। आज के ज़माने में ऐसा कहां होता है। हम कम से कम सलाम तो करें ऐसे लोगों को।


बाज़ार से म्यूज़िक सीडी खरीद सकते हैं....नेट से मुफ़्त में कई गाने डाउनलोड कर सकते हैं...लेकिन विविध भारती सुनने का आनन्द बयान नहीं किया जा सकता... एक अजीब सा एहसास मन को घेर लेता है... शायद बचपन के दिन याद आ जाते हैं जब छायागीत और हवामहल सुनते सुनते नींद आ जाती और रेडियो बजता ही रह जाता....सुबह मम्मी की डाँट से नींद खुलती... और रेडियो बन्द होता.... 

कई दिनों से मन खाली प्याले सा था....आज विविधभारती ने बचपन की याद दिला दी.... 
बचपन याद आया तो साथ लाया बचपना....गीत सुनते हुए लैपटॉप और कैमरा उठा कर बाहर निकल आए...
  काले आसमान के माथे पर गोल बिन्दिया सा चमकता चन्दा दिखा.... अपने माथे पर सजाने की चाहत से उसे आसमान के माथे से उतारना चाहा.... हाथ नहीं आया..... उंगलियों की आँख बना कर उसके अन्दर चमकती पुतली की तरह रख दिया......  उसे कैमरे में कैद कर लिया.... मन खुशी से झूम उठा... पचास में पन्द्रह का बचपना ..... वैसे देखा जाए तो उम्र के सभी पड़ाव मन के अन्दर कहीं किसी कोने में छिपे बसे रहते हैं.... वक्त नहीं मिलता उन्हें देखने का... या शायद हम देखना ही नहीं चाहते......
फेसबुक पर Sanjay Patel लिखते हैं अपनी वॉल पर " एक कटु यथार्थ>हम अपनी ज़िन्दगी की उलझनों में शरारतें करना भूल जाते हैं और कहने लगते हैं कि हम तो बड़े हो गये..आपको नहीं लगता कि महीने दो महीने में हमें बच्चा बन जाना चाहिये ?(काश! ऐसा हो पाता)"

वहाँ आया एक कमेंट अच्छा लगा आप भी देखिए... 

Tankeer Wahidi आसान है, बचपन का सरल अर्थ है निश्चल मासूम होना, जैसे-जैसे हम बडे होते हैं मन चालाक होता जाता है, ये चालाकियां बचपन से दूर ले जातीं हैं, अपने मन से छल कपट और चालाकियों को अलविदा करना शुरु कर दें बचपन पास आता जायेगा हां आयु तो अनुगामी है, किंतु अवस्था सामर्थ्य पर निर्भर है. हां आसान नहीं अपने चेहरों को गिरा देना किंतु यदि कर सको तो शुभ है. 


 बचपन सभी  जीना चाहते हैं... पर जाने क्यों नहीं जी पाते.....  सोचिए.... समझाइए....... 
इन तस्वीरों को भी देखिए..... 




अपने माथे पर सजाना चाहा चन्दा को गोल बिन्दिया सा 


लाख कोशिश करने पर भी हाथ न आया चन्दा 


उंगलियों की आँख में कैद किया चमकती पुतली सा 

6 टिप्‍पणियां:

  1. पर बच्चों की तरह तो जिया जा सकता है।

    जवाब देंहटाएं
  2. समझाते हैं खुद को......

    जवाब देंहटाएं
  3. बच्चों सा जीना ज़रूरी है और यह चाँद तो बहुत दिलकश है

    जवाब देंहटाएं
  4. विधिभारती, रेडियो, लैपटाप और कैमरा सभी दिल की अभिव्‍यक्ति को मुखर करते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  5. विविध भारती का नाम लेकर तो पुराने दिन याद करा दिये………॥

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत कुछ मिला इस पोस्ट में.....
    विविधभारती तो आज भी सुनती हूँ .....{आकाशवाणी से जुड़े होने के करण....आज के जमाने में भी ट्रांजिस्टर तो रखना पड़ता है ना...:)}
    विविधभारती के गाने सुने बिना...मेरे किचन के उपकरण काम करने से इनकार कर देते हैं ...बच्चे कुछ नाक-हौं सिकोड़ते हैं...पर इस पर नो कम्प्रोमाइज़ :)
    तस्वीरें तो क्या खूब ली हैं...आपने...बहुत ही सुन्दर
    और अपने अंदर के बच्चे से जब-तब मिलते रहना...जिंदगी जीने की जरूरी शर्त है.

    जवाब देंहटाएं