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मंगलवार, 1 सितंबर 2009

24वीं वर्षगाँठ पर ....
















पहली सितम्बर की सुबह की लालिमा ...

सन्ध्या की कालिमा में बदल गई....

लेकिन हाथ की कलम में कोई हरकत न हुई.....

इस उमस के मौसम में .......

टूटे बदन सी शिथिल पड़ी रही कलम .....

सोचा था उसके बल पर कुछ लिख पाऊँगी

चौबीस सालों का लेखा-जोखा कर पाऊँगी.....



कल की ही तो बात थी.....

माँ बाबा ने जीवन साथी संग भेज दिया था..

सृष्टि की रचना के पुण्य कर्म करने को ...

धर्म निभाने को नई राह पर चला दिया था....

पतिदेव नहीं.... धर्म पति, सखा और मित्र बने....

आस्था, निष्ठा, श्रद्धा और विश्वास अटल ने

जीवन में अमृत रस था घोल दिया....!



अपने अपने आसमान में.....

हम दोनों जीवन संगी भी विचरते....

इक दूजे की सीमा में दाखिल न होते...

दूर गगन की छोर को छूने ....

हम भी उड़ते बेफिक्री से....

अजब ग़ज़ब सी शक्ति पाकर

फिर लौट के आते नीड़ में अपने...!



एक आसमान हम दोनो का भी....

जिसके नीचे दो नन्हें पौधें जन्में...

मिले सूरज चाँद बराबर दोनों को ..

स्नेह की वर्षा होती दोनो पर इक जैसी...

नन्हें पौधों से बढकर रूप बड़ा लेने को बेचैन

दोनों मगन हुए लगन से बढ़ते जाते....

अपना अपना आसमान छूने को उड़ते जाते..... !