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मंगलवार, 9 सितंबर 2008

ईरान के नन्हे आर्यान का हिन्दी प्रेम



पिछले दिनों पहली बार दिल और दिमाग ब्लॉग जगत से पूरी तरह से आज़ाद था... एक नन्हें नटखट बच्चे में गज़ब का आकर्षण, जिसने अपनी मीठी प्यारी बातों से ऐसा मन मोह लिया कि बाकि सब भूल गया... हाथ जोड़कर नमस्ते करके सबका मन मोह लेता और अपनी सब बातें मनवा लेता...
हमसे वादा ले लिया कि अगली बार मिलने पर उसे राजकुमार आर्यान और
धर्मवीर जैसी ही पोशाक तोहफे में लाकर देनी है.
प्यार के रिश्तों में धर्म, देश , रहन-सहन, खान-पान और भाषा बाधा नहीं बनते... उत्तरी ईरान के अली और लिडा से दोस्ती ऐसी हुई कि अब परिवार का ही एक हिस्सा हैं.... पिछले दिनों लिडा अपने छोटे बेटे के साथ कुछ दिन रहने आई...... छोटा बेटा आर्यान तीन साल का है जो हिन्दी सीखने की खूब कोशिश करता है..... छोटा 'ए' बिग 'बी' का दीवाना है.... अमिताभ बच्चन की फिल्में तो दीवानगी से देखता ही है... कुछ हिन्दी सीरियल हैं जिनके टाइटल गीतों को भी गुनगुनाता है.... राजकुमार आर्यान, धर्मवीर और मै तेरी परछाईं जैसे सीरियल देखना नही भूलता .... देसी घी से चुपड़ी चपाती और दाल का दीवाना आर्यान मनपसन्द सीरियल शुरु होते टीवी के आगे खड़ा हो जाता है.....
हिन्दी का क, ख, ग ना जानते हुए भी आर्यान को सुर में गुनगुनाते हुए देखकर हम हैरान रह गए ...
कुछ छोटे छोटे वीडियो जोड़कर एक मूवी बनाई है...आप भी देखिए नन्हे राजकुमार आर्यान को और सुनिए उसका गुनगुनाना......




रविवार, 7 सितंबर 2008

एक साल का नन्हा सा चिट्ठा

एक डाल पर बैठा पंछी पंखों को खुजलाए
आसमान में उड़ने को जैसे ललचाए ....
की-बोर्ड का मन भी मस्ती से लगा मचलने
जड़ सी उंगलियाँ मेरी तेज़ी से लगीं थिरकने ....
मेरा चिट्ठा जैसे अभी कल ही जन्मा था
आज एक साल और दस दिन का भी हो गया........
घुटनों के बल चलता बालक जैसे रूठे, फिर ठिठके
वैसे ही खड़ा रहा थामे वक्त को .....
एक कदम भी आगे न बढ़ा
बस
अपने जैसे नन्हे बालक को देखता रहा
मुग्ध होता रहा ......
मोहित तो मैं भी थी उस नन्हे बालक पर
जो आया था ईरान से .....
तीन साल का नन्हा आर्यान हिन्दी से प्यार करता
हाथ जोड़कर नमस्ते कहता तो सब मंत्रमुग्ध हो जाते......
बड़ा बेटा वरुण भी उन्हीं दिनों इंजिनियर की डिग्री लाया
छोटे बेटे विद्युत ने अपने मनपसन्द कॉलेज में प्रवेश पाया ....
अर्दलान जो नन्हे आर्यान का बड़ा भाई , उसे भी नई दिशा मिली
गीत गाते गाते अपने देश से दूर विदेश में पढ़ने की सोची.....
बच्चों के उज्ज्वल भविष्य में व्यस्त माता-पिता
पल भर भी न रुकते , बस चलते ही जाते जीवन पथ पर
एक सितम्बर आई तो दोनों हम साथी इक पल को रुके .....
जीवन पथ पर जीवन साथी बन कर बाईस साल चले हम
चलते चलते कब और कैसे इक दूजे के सच्चे दोस्त बने हम .....
और जीने का मकसद पाया, रोते रोते हँसने का हुनर भी आया .......

एक साल का नन्हा सा चिट्ठा भी मुस्काया
छोटे छोटे पग भरता मेरी बाँहों में दौड़ा आया .....