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शनिवार, 12 जनवरी 2008

मैं झरना झर झर बहूँ, प्रेम बनूँ औ' हिय में बसूँ !

'प्रेम ही सत्य है' इस अटल सत्य को कोई नकार नहीं सकता. स्वामी विवेकानन्द जी ने भी कहा है, 'प्रेम ही विकास है, प्रेम ही मानव जीवन का मूलमंत्र है और प्रेम ही जीवन का आधार है, निस्वार्थ प्रेम और निस्वार्थ कार्य दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं. जैसे प्रेम से उच्च तत्त्व नहीं वैसे ही कामना के बराबर कोई नीच भाव नहीं. 'हमारे मन की बात हो जाए' कामना का यह भाव दुखों का मूल है.
कामनाओं के, इच्छाओं के बीहड़ जंगल में हम भटकते हैं, अपने मन की शक्ति से बाहर भी निकल सकते हैं . उस जंगल से बहुत दूर निकल कर प्रेम के महासागर में डुबकी लगा कर शांति पा सकते हैं. बस एक कोशिश करके........

मैं झरना झर झर बहूँ ।
अमृत की रसधार बनूँ ।।

मैं तृष्णा को शान्त करूँ।
प्रेम बनूँ औ' हिय में बसूँ।।

मैं मलयापवन सी मस्त चलूँ।
मानव मन में सुगन्ध भरूँ।।

मैं सबका सन्ताप ग्रहूँ।
हिय के सब का शूल गहूँ।।

मैं ग्यान की ऊँची लपट बनूँ।
अवनि पर प्रतिपल जलती रहूँ।।

मैं विश्व की ऐसी शक्ति बनूँ।
मानव मन को करूणा से भरूँ।।

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी आकांक्षाएं पूरी हों ऐसी शुभकामनाएं.... सुंदर कविता

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  2. आपके शब्दो के चयन की बात ही निराली है। इस पोस्ट मे सुन्दर चित्र की कमी खल रही है।

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  3. कुछ कठिन शब्दों को समेटे हुए सुन्दर भावों वाली सुन्दर कविता

    एक राय है कि आप कठिन शब्दों के मतलब भी नीचे दे दें तो आम पाठकों की संख्या में इज़ाफा होगा

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  4. आज की उद्विग्नता में इन्ही शब्दों की तलाश थी। बहुत सुन्दर।

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  5. @संजय जी, कामनाएँ सबकी शुभ हो और पूरी हो यही इच्छा है.
    @पंकज जी, अगली बार चित्र ज़रूर लगाएँगे.
    @राजीव जी, हम सोचते हैं कि यह सरल है लेकिन असल में जो हम सोचते है वैसा होता नहीं. अगली बार सरल लिखने का प्रयास होगा.
    @बाली जी और संजीत जी..धन्यवाद
    @ज्ञान जी, बस यही तो एक पल आनन्द दे जाता है जब हम किसी की भी एक पल के लिए उद्विग्नता दूर कर पाने मे समर्थ हो पाते हैं.

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  6. कामना करता हूँ कि आपकी सारी कामनायें पूरी हों।

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  7. bahut sundar shabdh bhi bhav bhi.

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