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रविवार, 4 नवंबर 2007

दुनिया एक किताबखाना

दुनिया एक किताबखाना है , हर शख्स यहाँ बेनाम किताब है
किताबों की इस दुनिया में , दाना भी हैं औ' अनपढ़ बेहिसाब हैं !!

जिल्द देख कर कभी कभी
किताब को नाम दिया जाता है ,
पहले पन्ने को पढ़ कर भी
कभी कभी नाम दिया जाता है !

दुनिया एक किताबखाना है , हर शख्स यहाँ बेनाम किताब है

बनावट एक सी है हर किताब की
जिल्द फर्क फर्क हर किताब की
सुनहरा वर्क देख मन ललचा उठे
खूबसूरत लिखावट देख सब भरमा उठे !

दुनिया एक किताबखाना है , हर शख्स यहाँ बेनाम किताब है

सादी किताब सीधी तकरीर
कोई-कोई ही समझे ये तदबीर
सादा लिबास सादा नाम
कोई न देखे उसका काम !!

दुनिया एक किताबखाना है , हर शख्स यहाँ बेनाम किताब है

8 टिप्‍पणियां:

  1. सादी किताब सीधी तकरीर
    कोई-कोई ही समझे ये तदबीर
    सादा लिबास सादा नाम
    कोई न देखे उसका काम !!

    बहुत सुन्दर। पर ऐसी किताबो के कद्रदान भी है। यह अलग बात है कि मुश्किल से मिलते है।

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  2. अंत और नवजीवन

    जो मन मे होते है
    वोही शब्द मन को भाते है
    जो मन को भाते है
    वोही मन को भरमाते है
    मेरे शब्द नहीं भरमाते तुमको
    इसी लिये वो भाते है तुमको
    खोलो और दरवाजे
    मिलेगे बहुत सुंदर लोग
    बहुत सुंदर शब्द
    या अपने ही शब्दो को
    अपना दोस्त बनाओ
    लिखो औरो को भी
    दिखाओ , शायद
    वह शब्द किसी को
    वह दे जो तुम कहते हों
    मिला है तुमको
    मेरे शब्दो मे
    जहाँ अंत आता है
    नवजीवन वहीँ होता है
    meenakshi aap kii kavita kae aprreciation mae kuch maere shabd

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  3. किताब में भला कैसे
    बन सकता खाना है

    किताब में भला कहां
    मिलता खाना है

    पढ़ते जाओ गुनते जाओ
    यह तो दिमाग खपाना है

    खपा कर ही अब तो इस
    जहां में मिलता खजाना है

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  4. उम्दा रचना. बधाई ले लो.

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  5. मीनाक्षी जी,बहुत गहरी बात कही है आपने "सुनहरा वर्क देख मन ललचा उठे
    खूबसूरत लिखावट देख सब भरमा उठे" यह कलयुग की 'किताब' है। पन्ने पढने के बाद भी पता नहीं चलता।

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  6. जी हां, किताबखाना! और आधी किताबें बिना पढ़े रह जाती हैं - अपनी टर्न की प्रतीक्षा में।

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  7. वाह मीनू जी क्या सोचा है दुनिया एक किताबखाना है …बड़िया कल्पना, बड़िया अभीव्यक्ती।

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  8. तो पहले ही आपने आगाह कर दिया था !

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